Monday 26 December, 2011

जवानी की कहानी

उम्र के कई पडाव है. बचपन की अपनी खुबिया है तो जवानी की अपनी मजा. बुढ़ापे में भी मजा ही है. बस एक सकारात्मक दृष्टी चाहिए. कुछ भी हो, हम प्रायः जवान/युवा दिखाना चाहते है. इस चक्कर में कई नुस्खे अपनाते है तथा कई अवसरों पर बिशेष व्यवहार का प्रदर्शन भी करते है जो कभी - कभी तो उपयुक्त भी नहीं होता है. जो कुछ भी हो..यह जानकर आप सभी खुश होंगे की हम हमेशा युवा दिख सकते है. इंग्लिश में एक कहावत है की "Life Begins at 40!" इसमें चमत्कार जैसी कोई बात नहीं है. कैसे?

उम्र की गणना प्रायः समय के सापेक्ष किया जाता है. यह गणना chronological ageing को दर्शाता है जबकि इसके विपरीत BIOLOGICAL AGEING होती है. BIOLOGICAL AGEING शारीर की सतत क्षय को  दर्शाता है. लोगो में एक भ्रम व्याप्त है की CHRONOLOGICAL AGEING तथा BIOLOGICAL AGEING साथ साथ घटित होता है. पर, ऐसा नहीं है. समय के साथ साथ हम बूढ़े होते है लेकिन हमारा शारीर नस्ट नहीं होता है. वास्तव में हम CHRONOLOGICAL AGEING को भूल कर BIOLOGICAL AGEING पर केन्द्रित हो तो हम सदेव युवा दिख सकते है. उसकी लघु चर्चा की जाये.

Thursday 8 December, 2011

नव साम्राज्य के नए किस्से


 
अरुंधती रॉय की पुस्तक नव साम्राज्य के नए किस्से  पढ़ा जो उनके बिभिन्न लेखो का संग्रह है. उक्त पुस्तक में एक लेख है : सितम्बर का साया...........
 वे लिखती है की:
" लेखको का मानना है की वे दुनिया से कथाये चुनते है. मै यह मानने लगी हु की उनकी इस सोच के पीछे उनका अहम् है. जबकि है इसका ठीक उल्टा. कथाये लेखको को दुनिया से चुनती है . कथाये हमारे सामने उद्घाटित होते है. सार्वजनिक वृतांत, निजी आख्यान .................ये हमे अपना उपनिवेश बना देती है. वे हमे लिखने के लिए उकसाती है. वे हम पर दवाव डालती है की हम उन्हें रचे. कथा तथा इतर कथा साहित्य मात्र कथा कहने की भिन्न तरीके है. मै ठीक से नहीं जानती की क्या कारन है की कथा मेरे अन्दर से नाचती हुई निकलती है. गैर -कथात्मक लेखन दर्द की उस ऐठन से, उस टूटी -फूटी दुनिया से उपजता है जिससे हर सुबह  मेरा सबका पड़ता है..........

लेखक जॉन बर्जर ने लिखा है-' कोई भी कहानी अपने आप मे अकेली नहीं हो सकती. अकेली कहानी हो ही नहीं सकती. ' ..............."

Wednesday 7 December, 2011

हिंदी के रूप : हमारा प्रयोजन


सूक्ति : '' उस भाषा को राष्ट्र भाषा के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए जो देश के बड़े हिस्से में बोली जाती है अर्थात हिंदी ''--- रवीन्द्रनाथ ठाकुर 

व्यवहार की दृष्टी से हिंदी भाषा के मुख्यतः ३ रूप है: 


  1. सामान्य हिंदी  जो दैनिक बोलचाल की हिंदी है . इसमें कोई पारिभाषिक शब्दावली नहीं होती है. 
  2. रचनात्मक हिंदी  जो साहित्य रचना की हिंदी है. इसमे  अनुभव तथा कल्पना का समन्वय आवश्यक रूप में होता है. इसमें कला और शैली के शास्त्र का अनुसरण होता है. 
  3. प्रयोजनमूलक हिंदी  जो व्यवहारिक प्रयोजन में प्रयुक्त होती ही. यह साहित्येतर हिंदी है. इसमें विशेष ज्ञान की जरुरत नहीं होती है. इसकी प्रयोजन अनुकूल पारिभाषिक शब्दावली होती है. यह भाषा की मानक संरचना का अनुसरण कराती है. इंग्लिश भाषा में इसे functional language कहा जाता है. 
प्रयोजन मूलक हिंदी में निम्नांकित वर्ग है: 

  1. प्रशासनिक हिंदी यथा परिपत्र, अधिसूचना .................
  2. व्यवसायिक हिंदी यथा खाता, निवेश .......................
  3. तकनिकी हिंदी यथा अयस्क, घर्षण .......................
  4. जन्संचारी हिंदी यथा अनुवाद, पटकथा .................
  5. विधिक हिंदी यथा करारनामा आदि. 
अतः विशेष प्रजोजन हेतु विशिष्ट जनों द्वारा प्रयुक्त हिंदी को प्रजोजन मूलक हिंदी कहा जाता है. 

धन्यवाद

Tuesday 6 December, 2011

आज़ादी बहुमूल्य होती है.

आज़ादी बहुमूल्य होती है. इसलिए, इसे यु ही सबो को प्रदान नहीं करना चाहिए. भारत की आज़ादी के बाद हम ऐसे बदल गए है की हममें से कई लोगो को आज़ादी की महत्ता ठीक से पता नहीं चल रहा है. इसी पृष्ठभूमि पर कुछ फिल्म्स भी बने है.
 ऐसा नहीं है की हम देशप्रेम की भावना से ओतप्रोत नहीं है लेकिन हम  मौसमी देशभक्त बनते जा रहे है. संभवतः आप सभी इस बात से सहमत होंगे. बात केवल राष्ट्रीय स्तर की नहीं है. यदि हम परिवार स्तर पर विचार करे तो हम पाएंगे की परिवार में भी सदस्यों के मध्य एक सिमित स्वतंत्रता का ही प्रयोग करना चाहिए.  परिवार में हर उम्र के सदस्य होते है. बड़ो तथा छोटो दोनो को अपनी आज़ादी के सीमा का ज्ञान होना चहिये. 
आज़ादी के साथ हमारी कर्तव्य जुडी होती है. उन कर्तव्यो के प्रति हमें जागरुक  होना तथा उसका निर्वाह करना दोनों ही समयानुकूल पूर्ण  होना चाहिए. जहा  तक स्वतंत्रता का प्रश्न है मेरे विचार से हमारी कर्तव्य हमारे अधिकार से कही अधिक मायने रखती है. सिमित स्वतंत्रता को अर्थ परतंत्रता कदापि नहीं है बल्कि इसका तात्पर्य  कुछ हद तक संतुलित नियंत्रण से है. स्वतंत्रता संपूर्ण विकास के लिए वातावरण प्रदान कराती है लेकिन किसी फल या फूल के पोधे की भाति हमारी वृद्धि  हो तो आज़ादी सार्थक होगी अन्यथा हम जंगल झाड़ ही बन पाएंगे.  

Friday 2 December, 2011

आज मुझे पटना जाना था. लेकिन,  मेरी तबियत ठीक नहीं लग रही थी. मैने अपनी नई योजना बनी. पटना जाने की तिथि अगले दिन के लिए स्थगित कर दिया. इस विचार अथवा निर्णय के बाद से मुझे राहत महसूस हो रहा है. मुझे लगता है की जीवन में मनोनुकूल निर्णय लेना तथा योजना बनाना हितकारी होता है. संयोगबश, इसी बिच एक प्रेरक प्रसंग पढ़ने को मिला. मै उसे यहाँ कहना चाहता हूँ .

सिकंदर महान विश्वविजेता बनने की इच्छा  रखता था. उस हेतु वह कई युद्ध लड़ता  हुआ  भारत आया. भारत में युद्ध के सञ्चालन के लिए प्रचलन के अनुसार उसे हाथी पर स्वर होने के लिए कहा गया. वह हाथी पर सवार हो गया. तत्पश्चात, उसने पूछा--'' हाथी की लगाम कहाँ है?''
सेनापति ने जवाव दिया--"हाथी को अंकुश से नियंत्रित किया जाता है और यह काम हाथी पर बैठा महावत करता है. हाथी पर लगाम नहीं लगे जाते है." यह सुनकर सिकंदर तुरंत हाथी पर से उतड़ गया और सेनापति से कहा:--"मै ऐसी सवारी पर नहीं बैठ सकता जिसका नियंत्रण मेरे हाथो में न हो." अंतत उसने घोड़े पर सवार हो युद्ध का सञ्चालन किया.

वास्तव में जिसने भी स्वयं पर विश्वास किया है उसे हर सफलता प्राप्त हुआ है.  

Wednesday 30 November, 2011

इंदिरा गोस्वामी

इंदिरा गोस्वामी जो मामोनी  गोस्वामी ( जन्म 14 नवम्बर १९४२) के नाम से भी जानी  जाती  है, एक लोकप्रिय संपादक, कवियत्री , प्रोफेसर, विदुषी और साहित्यकार रही है. उनका निधन  29 नवम्बर २०११ को हुआ. यह हमारे लिए अकल्पनीय क्षति है. 

वह साहित्य अकादमी पुरस्कार के विजेता (1982),  ज्ञानपीठ पुरस्कार (2000) और कई अन्य  पुरस्कार की विजेता रही है.  समकालीन भारतीय साहित्य के सबसे प्रसिद्ध   साहित्यकारों  में से वे एक थी.  अपने  लेखन के माध्यम से उन्होंने सामाजिक परिवर्तन की नीब रखी. वे  अलगाववादी असम के यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट और भारत की केंद्रीय सरकार के बीच मध्यस्थ के रूप में सफल भूमिका अदा की. 


पाकिस्तान पर उनकी एक अनुदित  कविता  इस प्रकार से है---

ओह पाकिस्तान, दिव्य भूमि!
हमें अपने दिल दे दो!
और बदले में हमारे दिल ले!
एक बार जब हम एक ही आकाश साझा!
एक ही सूरज के साथ आकाश!
हम युद्ध के मैदान पर में जुड़वां बहनों की तरह ही दर्द साझा
धूल हटाने.

.................

दोस्तों! तुम  रहो खुश,
... अब रह  रहे हो जहाँ !
 स्मृति कभी मारती नहीं ,

 कवियों का कहना है

दूरी केवल इसे  करती है शुद्ध ...
हम एक ही पेड़ के नीचे बैठे थे,
एक ही फूल की खुशबू का आनंद लिया
एक  समय तक...
किन्तु कई टुकड़े में है अब ! 
नष्ट पहाड़ और फूल के उद्यान 
जहां 
हम खेला था!
............
हमारी तरफ से उन्हें शत शत नमन. 

Monday 28 November, 2011

जिन्हें पढ़ कर हम बड़े हुए .....

 प्रख्यात हिंदी साहित्यकार  कुमार विमल का एक निजी अस्पताल में लंबी बीमारीके बाद शनिवार २६ नवम्बर २०११ को सुबह १०:४० बजे  निधन हो गया. वे  80 वर्ष के थे. उनके पार्थिव शरीर को लोहिया नगर , कंकर बाग़ में उनके आवास पर लाया गया. वे मूलत लखीसराय के पचेना गावं के रहने वाले थे. चार भाइयो में सबसे बड़े डॉक्टर विमल अपनी पत्नी,  चार बेटियोंऔर दो ​​बेटों से भरा पूरा परिवार छोड गए. उनकी कई कविताएं अंग्रेजी, बंगाली, तेलुगु, मराठी, उर्दू और कश्मीरी में अनुवाद किया गया. अपने महत्वपूर्ण पुस्तकों के अलावा 'मूल्य और मीमांसा ' और कविताएं 'अंगार' और 'सगरमाथा ' उनकी प्रसिद्ध रचना हैं. श्री विमल पूर्व नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के कुलपति, बिहार लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष और बिहार इंटरमीडिएट शिक्षा परिषद के पूर्व अध्यक्ष के अलावा वे डी जे कॉलेज मुंगेर, जैन कॉलेज आरा और औरर पटना विश्वविद्यालय के अध्यक्ष भी रहे.  वे १९७० में बिहार राष्ट्रभाषा  परिषद् के निदेशक बने. उनका जन्म १२ अक्टूबर १९३१ को उनके ननिहाल भागलपुर जिले के कल्चुक में हुआ था. 
उन्हें शत शत नमन!